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मंगलवार, 12 जुलाई 2016

पुस्‍तक :-मेरे हमदम , लेखिका:-संगीता सिंह'भावना'
प्रकाशक:- रत्‍नाकर प्रकाशन,इलाहाबाद 
मूल्‍य:- ७०/- रुपये (पेपर बैक संस्‍करण)
आज संगीता सिंह 'भावना' जी की किताब 'मेरे हमदम' ऑखों के सामने पड़ी तो यही पुस्‍तक पढने लगे । बहुत अच्‍छा काव्‍य संग्रह है ।भूमिका में एक जगह डॉ. नवेन्‍द्र कुमार सिंह जी (वरिष्‍ठ प्रवक्‍ता ,ह‍िन्‍दी विभाग,बुन्‍देलखण्‍ड, झॉसी ) ने लिखा है संगीता सिंह 'भावना' की रचनाओं के संग्रह का मेरे हमदम उतना ही सार्थक है ,जितनी प्रेम की प्रवहमान सरिता के बीच उठती -आगे बढती शब्‍द तरंगें ---
तुम समुद्र की गहराई हो
मधुर हवा का झोंका हो ,
तुम विश्‍वास की अटूट डोर हो
जीवन के अनुभवों की अनुपम ढेर हो
जीवन के हर उतार-चढाव में
तुम्‍हारा होना सुखद एहसास है ........(थोडी दूर साथ चलो)

बहुत अच्‍छी भूमिका लिखी डॉ. सिंह साहब ने ,मैनें पढा वाकई 'मेरे हमदम' काव्‍य संग्रह लाजवाब है ,कई रचनॉए ऐसा लगता है कि जैसे आपकी बात को कह रहीं हैं । रचनाकार आपके मन की जानता है ।
सोचती हूॅ हर सम्‍बन्‍धों को
बहुत बारीकी से
और इस निष्‍कर्ष पर पहुॅचती हूॅ कि
हर रिश्‍ते मॉगते हैं समर्पण
हम, जिसे शायद मालूम ही नहीं
प्रेम समर्पण..........................(अकेले)
सभी रचनॉए एक से बढकर एक हैं ।संगीता सिंह जी के आलेखों और कहानियों की तरह निश्चित ही ये काव्‍य संग्रह 'मेरे हमदम' भ्‍ाी लोगों को बहुत पसंद आयेगा । करुणावती साहित्‍य धारा परिवार की तरफ से एक पुन: हार्दिक शुभकामनाऍ और बधाई । साहित्‍य में नित नये सोपान यूॅ ही चढती रहें ।

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