नियम निर्धारण के किए साहित्य शास्त्र की रचना उचित नहीं जान पड़ती और न
ही स्वाभाविक ही है ।साहित्य की वेगवती सरिता नियमों की अवहेलना कर
स्वछंदतापूर्वक बहने में ही प्रसन्न रहती है । साहित्य संबन्धी
शास्त्रकार को अनधिकार चेष्टा नहीं करनी चाहिए । उसका यह कार्य नहीं है
कि वह सरिता के बहाव के सामने बॉध बॉधने की चेष्टा करें । उसे चाहिए कि वह
उस प्रवाह के दर्शन करें ,सुगम्य नौका द्वारा उसमें विहार करे, उसके
बॅधें हुए घाटों तथा तट की शोभा का आनंद ले ।
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रविवार, 17 जुलाई 2016
मंगलवार, 12 जुलाई 2016
पुस्तक :-मेरे हमदम , लेखिका:-संगीता सिंह'भावना'
प्रकाशक:- रत्नाकर प्रकाशन,इलाहाबाद
मूल्य:- ७०/- रुपये (पेपर बैक संस्करण)
प्रकाशक:- रत्नाकर प्रकाशन,इलाहाबाद
मूल्य:- ७०/- रुपये (पेपर बैक संस्करण)
आज
संगीता सिंह 'भावना' जी की किताब 'मेरे हमदम' ऑखों के सामने पड़ी तो यही
पुस्तक पढने लगे । बहुत अच्छा काव्य संग्रह है ।भूमिका में एक जगह डॉ.
नवेन्द्र कुमार सिंह जी (वरिष्ठ प्रवक्ता ,हिन्दी
विभाग,बुन्देलखण्ड, झॉसी ) ने लिखा है संगीता सिंह 'भावना' की रचनाओं के
संग्रह का मेरे हमदम उतना ही सार्थक है ,जितनी प्रेम की प्रवहमान सरिता के
बीच उठती -आगे बढती शब्द तरंगें ---
तुम समुद्र की गहराई हो
मधुर हवा का झोंका हो ,
तुम विश्वास की अटूट डोर हो
जीवन के अनुभवों की अनुपम ढेर हो
जीवन के हर उतार-चढाव में
तुम्हारा होना सुखद एहसास है ........(थोडी दूर साथ चलो)
तुम समुद्र की गहराई हो
मधुर हवा का झोंका हो ,
तुम विश्वास की अटूट डोर हो
जीवन के अनुभवों की अनुपम ढेर हो
जीवन के हर उतार-चढाव में
तुम्हारा होना सुखद एहसास है ........(थोडी दूर साथ चलो)
बहुत अच्छी भूमिका लिखी डॉ. सिंह साहब ने ,मैनें पढा वाकई 'मेरे हमदम'
काव्य संग्रह लाजवाब है ,कई रचनॉए ऐसा लगता है कि जैसे आपकी बात को कह
रहीं हैं । रचनाकार आपके मन की जानता है ।
सोचती हूॅ हर सम्बन्धों को
बहुत बारीकी से
और इस निष्कर्ष पर पहुॅचती हूॅ कि
हर रिश्ते मॉगते हैं समर्पण
हम, जिसे शायद मालूम ही नहीं
प्रेम समर्पण..........................(अकेले)
सभी रचनॉए एक से बढकर एक हैं ।संगीता सिंह जी के आलेखों और कहानियों की तरह निश्चित ही ये काव्य संग्रह 'मेरे हमदम' भ्ाी लोगों को बहुत पसंद आयेगा । करुणावती साहित्य धारा परिवार की तरफ से एक पुन: हार्दिक शुभकामनाऍ और बधाई । साहित्य में नित नये सोपान यूॅ ही चढती रहें ।
सोचती हूॅ हर सम्बन्धों को
बहुत बारीकी से
और इस निष्कर्ष पर पहुॅचती हूॅ कि
हर रिश्ते मॉगते हैं समर्पण
हम, जिसे शायद मालूम ही नहीं
प्रेम समर्पण..........................(अकेले)
सभी रचनॉए एक से बढकर एक हैं ।संगीता सिंह जी के आलेखों और कहानियों की तरह निश्चित ही ये काव्य संग्रह 'मेरे हमदम' भ्ाी लोगों को बहुत पसंद आयेगा । करुणावती साहित्य धारा परिवार की तरफ से एक पुन: हार्दिक शुभकामनाऍ और बधाई । साहित्य में नित नये सोपान यूॅ ही चढती रहें ।
शुक्रवार, 8 जुलाई 2016
करूणावती साहित्य धारा के नए अंक के लिए सभी सम्मानित रचनाकार अपनी रचनॉए
लेख,कहानी, कवितॉए,साक्षात्कार ,संस्मरण आदि ५ जुलाई,२०१६ तक पत्रिका की
मेल आई डी karunavati. Sahity7@gmail.com
पर अथवा पत्रिका की सह संपादिका आदरणीय संगीता सिंह भावना जी की मेल आई डी
singhsangeeta@558gmail.com पर भेजें .रचनॉए मौलिक हों ,स्वलिखित एवं
अप्रकाशित हों. रचनाओं के साथ अपना संक्षिप्त परिचय एवं चित्र अवश्य
भेजें.रचनाओं के प्रकाशन के लिए कोई मानदेय नहीं है. ब्लाॅगरों और ट्यूटर के लिए १० जुलाई २०१६ तक का समय है ।
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