आज भारतीय नारी ने इस उक्ति को स्वयं परिभाषित किया है हालाँकि भारतीय समाज में वह अबला व् पीडिता रूप में ही ज्यादा दिखलाई गई है | स्त्री जगत को आधी आबादी की संज्ञा दी गई है ,पर उस आधी दुनिया की कमान सदैव पुरुष के हाथ में होताहै और समय-समय पर वह पुरुष द्वारा अनुशाषित होते रहती है कहने का तात्पर्य यह है कि तमाम उच्च मानदंडों के बावजूद आज भी स्त्री पुरुषों के अधीन है | हालाँकि, आज नारी ने भी अपनी अस्मिता के प्रति काफी सजगता दिखाई है,और अपना एक मजबूत आधार बनाने में तत्पर दिखाई दे रही है ,जिसका सबसे बड़ा उदाहरण वो 'स्त्री लेखन' के रूप में प्रस्तुत कर रही है | ऐसा कर वह कुछ समय के लिए ही सही स्वतंत्रता का अनुभव करती है | अपने अंतर्मन के भावों को पन्नों पर उकेरकर अपने मन-मष्तिष्क को संतुष्ट करती है,भले ही थोड़े समय के लिए ही सही पर इन क्षणों में वह अपनी पीड़ा को भूल जाती है और अपनी अहमियत को समाज के सामने परोसती है | हमारे देश में स्त्रीयां हमेशा से ही साहित्य सृजन करती रही हैं, यही नहीं भारत के आलवा अन्य देशों में भी स्त्रीयों के कलम का जादू चलता आया है | स्त्रीयों में खुद को व्यक्त करने का कई तरीका है जिसमें साहित्य एक अभिन्न तरीका है | आज स्त्रीयां करीब-करीब सभी विधाओं में लिख रही हैं और अपने अनुभव,अनुभूतियाँ और विचारों के जरिये वह खुद को प्रस्तुत कर रही है | साहित्य के जरिये वह अपने दुःख-दर्द ,हर्ष उल्लास तथा जीवन से मिले कटु अनुभवों को भी प्रकट कर रही है | वह सिर्फ ओरतों की पीड़ा को ही नहीं बल्कि समाज समय और दुनियां की तमाम गतिविधियों को अपने कलम की ताकत से विस्तार दे रही हैं | स्त्री साहित्य समाज में फैले उन सभी विसंगतियों को भी अपने लेख-आलेखों द्वारा समाज में परोस रही है जिन्हें वो सामान्य रूप में उजागर नहीं कर पा रही थी | समाज में हो रहे परिवर्तन,बदलती स्त्री, बदलते रीति-रिवाज,पुरुष मानसिकता इन सभी चीजों पर आज स्त्री बड़े ही धड़ल्ले से लिख रही है और समाज को वर्तमान की सच्चाई से अवगत करा रही है | यह एक बेहतरीन और सुन्दर प्रयास है साथ ही यह कितने गर्व की बात है कि सदियों से दोयम दर्जा प्राप्त स्त्री अपनी दासता से मुक्त होने को निरंतर प्रयासरत है | समय और समाज की हर गतिविधियों को टटोलते हुए अपनी बातोंको बड़ी ही स्पष्टवादिता से स्त्री अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के सामने साहसपूर्ण अभिव्यक्त कर रही है ,निश्चित ही यह एक सराहनीय प्रयास है | समकालीन साहित्यकारों ने अपने साहित्य में पुराने दकियानूसी विचारों को तोड़ते हुए एक जीती-जागती ,संवेदनशील और सतत नारी की प्रतिमा को समाज के सामने उजागर किया है | साहित्य में स्त्री स्वातंत्र्य का कारवां आज अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ निर्वाध व् अनवरत रूप से गतिमान है | स्त्री को अपनी अस्मिता की पहचान और अपने दायित्वबोध का अहसास कराने में में समकालीन साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है
(लेखिका पत्रिका की सह संपादिका)
उम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद ,पोस्ट पर आने के लिए आभार
हटाएंsanskhep me bahut goodh baaten, achha lekh
जवाब देंहटाएंआभार विभा दी
जवाब देंहटाएंआभार राजेश जी
जवाब देंहटाएं