बिहार के मिथिला क्षेत्र की चर्चित मधुबनी पेंटिंग---पद्मसम्भव श्रीवास्तव
बिहार के मिथिला क्षेत्र की चर्चित मधुबनी पेंटिंग का नाम अब पूरी दुनिया में लिया जा रहा है। यहां एक ऐसा परिवार भी है, जिसके सभी सदस्य मधुबनी पेंटिंग के माहिर कलाकार हैं।प्राचीन समय में भले ही इस पेंटिंग से घरों की दीवारों को सजाया संवारा जाता हो, मगर हाल के दिनों में मधुबनी पेंटिंग कपड़ों और सजावटी वस्तुओं के साथ-साथ इसकी पहचान देश-विदेश में होने लगी है।कलाकार राजकुमार की नानी, मां, पत्नी भाई, भाभी, मामा-मामी के अलावा परिवार के कई अन्य सदस्य मधुबनी पेंटिंग की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।राजकुमार बताते हैं कि मधुबनी पेंटिंग के नाम से मशहूर यह चित्रकला मिथिला निवासियों की प्राचीन परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर के तौर भी जानी जाती है। मधुबनी जिले का शायद ही कोई गांव ऐसा हो, जहां इस प्रकार की पेंटिंग नहीं की जाती हो, लेकिन इस कला के लिए दो गांव- रांटी और जितवारपुर का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम होने से कलाकारों को विदेश में जाकर काम करने का मौका मिला।रांटी में लोग आज भी फूलों से बने रंगों और चित्रकारी में लाइन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि जितवारपुर में अब फैब्रिक में लगने वाले कृत्रिम रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है। वैसे जितवारपुर को प्रसिद्धि इस कारण भी मिली कि इसी गांव की निवासी जगदंबा देवी को मधुबनी कला को लोकप्रिय बनाने में योगदान माना जाता है।मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार दिवंगत जगदम्बा देवी को वर्ष 1970 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 1975 में पद्म पुरस्कार से सम्मनित किया गया था।जगदंबा देवी के गुजर जाने के बाद उनकी विरासत को संभालने और उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिए उनकी भतीजी यशोदा देवी ने जिम्मा संभाला। मधुबनी पेंटिंग की चर्चित कलाकार और कई सम्मान तथा पुरस्कारों से नवाजी गईं यशोदा ने अपनी पूरी जिंदगी मधुबनी कला के लिए समर्पित कर दी।कहा जाता है कि यशोदा देवी सात-आठ वर्ष में ही रंगों और लकीरों से खेलने लगी थीं। यशोदा देवी आज भले नहीं हों, परंतु उनकी विरासत को अब उनके दो पुत्र अशोक कुमार दास और राजकुमार लाल आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
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